शिवलिंग क्या है और कैसे बना । Shivling Kya Hai or Kaise Bana

शिवलिंग क्या है और कैसे बना । Shivling Kya Hai or Kaise Bana

ब्रह्माण में सबसे तेजस्वी देव आदि शंकर भोलेनाथ को माना जाता है। हिंदू धर्म में ऐसा कोई भी जातक नहीं होगा, जिसे आदि देव शंभू की महिमा के बारे में पता ना हो। पृथ्वी वासियों की रक्षा के लिए पृथ्वी पर 12 ज्योर्तिलिंग मौजूद है, जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य जीवन के सभी कष्टों का अंत हो जाता है। इतना ही नहीं महादेव के स्मरण मात्र से संकट मनुष्य को छू तक नहीं सकता है। जो भी शिवभक्त सच्चे मन से भोलेनाथ की आराधना तथा पूजन करता है उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। हिंदू धर्म में भगवान शंकर की पूजा शिवलिंग के रूप में करते है, तो आखिर यह शिवलिंग क्या है और कैसे बना ? इस बारे में आज हम इस रोचक पोस्ट के जरिए जानेंगे। साथ ही आपको शिवलिंग से जुड़ी सारी जानकारियां पहुचाने की कोशिश करेंगे। ताकि आपको यह पता लग सके कि, शिवलिंग की उत्पत्ति किस प्रकार हुई। चलिए देर ना करते हुए शुरू करते हैं शिवलिंग क्या है और कैसे बना । Shivling Kya Hai or Kaise Bana

शिवलिंग क्या है और कैसे बना?

दरअसल शिवलिंग भगवान शंकर का प्रतीक है लिंग का आकार बेलनाकार होता है, शिवलिंग का ऊपरी अंडाकार भाग परशिव का प्रतिनिधित्व करता है। ठीक इसी प्रकार शिवलिंग का निचला भाग पीठम् पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू धर्म ग्रंथ शिवपुराण की मानें तो आदि देव महादेव ही सबसे दिव्य देव है जो हर कार्य के लिए उत्तरदायी है तथा संपूर्ण ब्रह्माण के परमेश्वर है। शिव पुराण में शिवलिंग के बारें में असंख्य बातें कही गई है, हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार शिवलिंग सम्पूर्ण ब्रह्मण का प्रतीक है तथा स्कन्द पुराण में भी कहा गया है “अनंत आकाश शिवलिंग है और पृथ्वी उसका आधार है। समय के अंत में समस्त ब्रह्मांड और समस्त ईश्वर शिवलिंग में विलीन हो जाएँगें।

शिवलिंग में लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है इसी प्रकार शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। शिवलिंग ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है, शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष आदि का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।

कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति

हिंदू धर्म में प्रचलित पौराणिक कथा की मानें तो, प्रकृति के निर्माण के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में कौन सबसे अधिक शक्तिशाली है। बात इस कदर बढ़ गई कि, युद्ध की नौबत आ गई। इसके बाद दोनों को आकाश में एक चमकदार पत्थर दिखाई पड़ा और भविष्यवाणी हुई कि जो भी इसका अंत या प्रारम्भ खोज लेगा वही सबसे शक्तिशाली होगा। भगवान विष्णु नीचे तो भगवान ब्रह्मा ऊपर चले गए पर दोनों में से कोई भी अंत न खोज सका।

इसके बाद विष्णु जी और ब्रह्मा जी दोनों पुनः स्थान पर लौट आए। जिसके बाद भगवान विष्णु ने सत्य कह दिया कि वो इस खोज में असफल रहे हैं परन्तु भगवान ब्रह्मा ने असत्य कहा और कहा कि वो इस पत्थर का अन्त खोजने में सफल रहे हैं। यह सुन कर शंकर भगवान अपने साकार रूप में प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि यह पत्थर शिवलिंग है जिसका न अंत है न आरम्भ, जिसके बाद से शिवलिंग को भगवान शंकर के रूप में पूजा जाता है क्योकि भगवान शंकर को अनादी कहा गया है।

कुछ और महत्वपूर्ण लेख –

विज्ञान के अनुसार भगवान शिव कौन है?

शिव ही सर्वोच्च भगवान हैं जो ब्रह्मांड की रचना, रक्षा तथा परिवर्तन करते हैं ।

शिव का वास कहाँ है?

शिव का वास कैलाश पर्वत पर है।

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