By - Kamlesh Verma
छूटे हुए हाथों का छूटना अब और नही अखरता पड़ चुका है अब फ़र्क इतना कि अब फ़र्क नही पड़ता
ज़मीन पर मेरा नाम वो लिखते और मिटाते हैं, वक्त उनका तो गुज़र जाता है, मिट्टी में हम मिल जाते हैं…